Saturday 20 August 2016

भगवद् चिन्तन में मिलता है आनन्द ही आनन्द


भगवद् चिन्तन में मिलता है आनन्द ही आनन्द
पूज्य महाराज श्री
वृन्दावन । मानव सांसारिक वस्तुओं में सुन्दरता ढूंढता है । सुन्दर और भोग प्रदान करने वाली वस्तुओं को एकत्रित कर प्रसन्न होता है लेकिन भगवद् प्रेमी अपने अराध्य के स्वरूप चिंतन में ही आन्नदित होता रहता है । क्योंकि वह जानता है कि इस नश्वर संसार की जो सबसे ज्यादा सुन्दर वस्तु है वह भी भगवान के पैर के नाखून के की धोबन के बराबर सुन्दरता नहीं रखती । अगर उसके रूप का चिंतन करें तो मानव को अन्य किसी की आवश्यक्ता नहीं रह जाती । भगवान सवत्र व्याप्त है लेकिन उसे इन भौतिक आंखों से नहीं देखा जा सकता है । उन्हें देखने के लिये स्वच्छ हदृय और पवित्र मानसिक आखें चाहियें । उक्त विचार शांति सेवा धाम वृन्दावन में आयोजित भव्य श्रीमद्भागवत कथा में पूज्य महाराज श्री ने व्यक्त किये । 

मानव स्वार्थ को इंगित करते हुये उन्होंने कहा कि हम भगवान को केवल मुसीबत में याद करते हैं । सुख के दिनों में हम अपने आनन्द में भगवान को शामिल नहीं करते । जिस तरह हम अपने दुख को बांटने के लिये कन्हैया को पुकारते हैं उसी तरह अपने उत्सवों में उसे मनुहार करके बुलाना चाहिये । हम भगवान से अपना जैसा संम्बध जोड़ लेते हैं वह उसी के रूप में हमें मिल जाते हैं ।

कथा प्रसंगों में बोलते हुये उन्होनें कहा कि भक्तवत्सल भगवान अपने भक्तों की पुकार पर मदद को दोड़े चले आते हैं । अपने प्रेमियों के दुख हरने पर उनको प्रसन्नता होती है । दीन दुखियों की सेवा और परोपकार करके भगवान को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है । राजा बलि दान के लिये प्रसिद्ध थे । संतजन और असहायों के सेवा में वह भगवान की सेवा भूल जाते थे । लेकिन उनकी सेवा सीधे भगवान के चरणों में जाती थी । उनकी दानवीरता की परीक्षा के लिये स्वंय नारायण भगवान वामन अवतार लेकर पृथ्वी पर आये । दो पगों में सारी पृथ्वी नाप ली । तीसरे पग रखने के लिये जब जगह नहीं बची तो राजा बलि ने अपना मस्तक आगें कर स्वयं को समर्पित कर दिया । 

कथा के मध्य महाराज श्री ने मधुर वाणी में रंग मत डारे रे सांवरिया....., सांवरिया लै चल पल्लीपार... तूने अजब रचायो भगवान खिलोना माटी का... जैसे मधुर भजन प्रस्तुत किये तो पण्डाल में श्रोता झूमकर नृत्य करने लगे ।
रामचन्द्र जी किसलिये आये? - रामचन्द्र जी केवल रावण को मारने नहीं आये थे । भगवान में इतनी शक्ति है कि अगर वह अपनी भृकटि (भौंह) टेढ़ी कर दे ंतो सौ रावण भस्म हो जायें । रामचन्द्र जी आये थे मानव को मानवता सिखाने के लिये । राम जी ने साधारण मानव जीवन में प्रदर्शित किया कि एक पुत्र, भाई, पति, पिता और राजा को क्या व्यवहार करना चाहिये । 

जीना किसलिये- कथा श्रवण को आये नवयुवक युवतियों को सम्बोधित करते हुये महाराज श्री ने कहा कि हम पढ़ते हैं नोकरी के लिये, नोकरी करते हैं पैसे के लिये, पैसा कमाते हैं खाने के लिये, खाना खाते हैं जीने के लिये लेकिन कभी सोचा है कि जीते हैं किसलिये? निरूदेश्य जीवन मृत्यु के समान है । युवाओं का आह्वान करते हुये उन्होंने कहा कि हमारा जीवन देश, धर्म और माता-पिता के लिये समर्पित होना चाहिये । माता-पिता हमें केवल जन्म ही नहीं देते बल्कि प्रारम्भ के उन दिनों में हमारे लिये अपने सुख-सुविधायें त्याग देते हैं जब हम इस दुनियां से अनजान और शक्तिहीन होते हैं । उन्होने कहा कि जो बच्चे अपने माता पिता का आदर नहीं करते वह जीवन में कभी सफल नहीं होते हैं ।

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